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शारीरिक शिक्षा के दलों' की प्रार्थनाएं और माताजी के उत्तर
मधुर मां मर तूने हमारे लिये मार्ग को सभी संकटों और कठिनाइयों ले मुक्त रखा है यह मार्ग निश्चय ही लक्ष्य तक ले जाता हैं ! और जब अंतिम विजय प्रान्त होगी तो वह अनन्तता तक जा पहुंचेगी !
मां हमें हमेशा हरा रख ताकि हम बिना रुके हमेशा उस मार्ग पर बढ़ते रहें जो तूने हमारे लिये इतने श्रम के साथ बनाया है !
मेरे नन्हे बच्चों, तुम आशा हो, तुम भविष्य हो । इस तरुणाई को हमेशा बनाये रखो, यहीं प्रगति की क्षमता है; तुम्हारे लिये ''असंभव'' शब्द का कोई अर्थ नहीं रह जायेगा ।
(२२-४-१९४९)
गुप बी
मधुर मां हम तेरी अंतिम सुनिश्चित विजय के लिये लडनेवाले तेरे वीर वफादार सिपाही बनना चाहते हैं ! मधुर मां की जय !
विजय के लिये आह्वान
मेरे नन्हे बहादुर सिपाहियो, मै तुम्हारा अभिवादन करती हू, विजय सें साक्षात्कार करने के लिये तुम्हारा आवाहन करती हू ।
(३-४-१९४९)
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गुप सी
प्रभो अपने श्रेष्ठ कार्यकर्ताओं को समस्त अज्ञान ले मुक्त कूर उनकी पवित्रता की ध्वजा को छोटे-से-छोटे रास्ते ले उपलब्धी' की ओर ले जा?
तेरी ही इच्छा पूरी हों हमारी नहीं
१ यहां इन दलों का उल्लेख उसी तरह किया गया हैं जैसे उस समय थे । बाद में उनमें फेर-फेर हुए है।
प्रभु अपने कार्यकर्ताओं में से उन्हीं को '' श्रेष्ठ' ' कहेंगे जो अपने अंदर की पाशविकता को पूरी तरह जीत लेंगे और उसके परे चले जायेंगे । आरंभ में हम उनके निष्ठावान और सच्चे निष्कपट कार्यकर्ता बनें और जब यह विनम्र कार्यक्रम पूरा हो जाये तब - हम अपने-आपको ज्यादा बड़ी उपलब्धियों के लिये तैयार करेंगे ।
(२३ -४ -१९४९) *
गुप डी
मधुर मां हम तेरे वीर योद्धा बनना चाहते हैं हम अंतिम 'विजय' तक तेरा अनुकरण करेंगे!
एक, सच्चे और निष्कपट हृदय से हम सब 'विजय' के लिये संकल्प करते हैं, लेकिन वह एक-एक चरण करके ही उपलब्ध हो सकती है । अध्यवसायपूर्ण अनुशासन पहला कदम है । तुम्हारी नयी वर्दी इसकी प्रतिपूर्ति का प्रतीक हो ।
(१७-४-१९४९)
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गुप डीजी
मधुर हम- तेरे नन्हे बालक- तेरे सर्वशक्तिमान 'प्रकाश' के लिये अभीप्सा करते हैं? और मधुर मां तूने हमें अंतिम 'विजय' का आश्वासन दिया हो तुर्रा इच्छा है कि हम तेरे वफादार सच्चे बहादुर और अनुशासन सैनिक बनें !
मधुर मई यह हमारी प्रतिज्ञा है हमारा निश्चय है कि हम रेले होते और सबसे बढ़कर यह कि हम अपने-आपको पूरी तरह तेरे हाथों मै सौंप देने? हमें यह करने की शक्ति प्रदान कर !
मै तुम्हारी प्रतिज्ञा स्वीकार करती हूं, और तुम उसे सिद्ध करने में मेरी सहायता पर भरोसा रख सकते हो । आयु का अस्तित्व उन्हीं लोगों के लिये है जो बूढ़े होने का चुनाव करते हैं।
आगे बढ़ो, हमेशा आगे बढ़ो, भय के बिना और संकोच के बिना आगे बढ़ो ।
(२२-४-१९४९)
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२४६ गुप डीके
दिव्य जननी हमारी प्रार्थना है :
वर दे कि हम हमेशा तेरी आज्ञाकारी और सच्चे सैनिक रहे तेरी शक्ति हमें विरोधी शक्तियों के विरूद्ध लड़ने और तेरी विजय पाने के योग्य बनाये माताजी की जय !
हमेशा निष्ठावान और अध्यवसायी रहो तो तुम्हें उपलब्धि में अपना भाग मिलेगा ।
(२२-४-१९४९)
नृप ई
हम वही होना चाहते हैं जो द हमें बनाना चाहे !
मुझे तुम्हारी सद्भावना पर पूरा विश्वास है । मेरी सहायता पर विश्वास रखो ।
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कप्तानों का दल
'शारीरिक शिक्षण' के कप्तानों :
तुम सर्वश्रेष्ठ हो सकते हो और तुम्हें होना चाहिये । मै सोच रहीं थी कि, आश्रम मे, एक केंद्र होना चाहिये जिसके चारों ओर सब कुछ संगठित हो । 'शारीरिक शिक्षण' के कप्तान शारीरिक 'शिक्षा के केंद्र' हों सकते हैं । उनकी संख्या अधिक होने की जरूरत नहीं है, लेकिन चुनाव अच्छा हो, है पहली श्रेणी के लोग हों, अतिमानवता के सच्चे प्रत्याशी हों जो अपने-आपको पूरी तरह, बिना कुछ बचाये भगवान् के महान् कार्य के लिये दे सकें । तुमसे यहीं आशा की जाती है । यही तुम्हारा कार्यक्रम होना चाहिये ।
(मार्च, १९६१)
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माधुर मां
तूने हमें जो लक्ष्य दिखलाया है हम मिलकर उसके लिये काम करने की अभीप्सा करते हैं !
२४७ इस महान कार्य की सिद्ध करने के लिये हमें आवश्यक त्रजुतर सहस्र अध्यवसाय और सदभाव प्रदान कर !
हमारे अंदर वह ज्वाला जगा जो हमारे अंदर के सारे विरोध को भस्म कर दे ..और हमें तेरे वफादार सेवक बनने के योग्य बनाये
मेरे बालको,
हम सब उसी एक लक्ष्य और उसी उपलब्धि के लिये मिलकर एक हुए हैं-हमें भागवत 'कृपा' ने जो काम पूरा करने के लिये दिया हैं वह अनोखा और नवीन है । मैं आशा करती हूं कि तुम इस काम के असाधारण महत्त्व को अधिकाधिक समझो और तुम अपने अंदर उस श्रेष्ठ आनंद को अनुभव करोगे जो उपलब्धि सें तुम्हें प्राप्त होगा ।
भागवत शक्ति तुम्हारे साथ है- उसकी उपस्थिति को अधिकाधिक अनुभव करो और खबरदार, उसे कभी धोखा न देना ।
ऐसा अनुभव करो, ऐसी इच्छा करो, ऐसा कार्य करो कि तुम नये जगत् की सिद्धि के लिये नयी सत्ताएं बनो और इसके लिये मेरे आशीर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ रहेंगे ।
(२४ -४ -१९६१)
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